Summary
परिचय
प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास 'रंगभूमि' का एक अंश 'सूरदास की झोंपड़ी' एक कहानी के रूप में प्रस्तुत की गई है। यह कहानी एक अंधे भिखारी सूरदास तथा उसके पालित बेटे मिठुआ को केन्द्र में रख कर लिखी गई है।सूरदास ने भिक्षा माँग-माँग कर कुछ पैसे संचित किए हैं जिससे वह अपनी तीन अभिलाषाएँ पूरी करना चाहता है-
(क) संचित धन से पितरों का पिंडदान करना।
(ख) अपने पालित पुत्र मिठुआ का ब्याह करना।
(ग) गाँव के लिए एक कुँआ बनवाना।
- उसी गाँव में जगधर और पैरों भी रहते हैं जो इस कथा के खलनायक और उपखलनायक के पात्रों के रूप में उभरते हैं।
- भैरों की पत्नी सुभागी अपने पति की रोज-रोज की मार से बचने के लिए सूरदास की झोंपड़ी में शरण लेती थी। इसी ईर्ष्या भाव के कारण भैंरो सूरदास को अपना दुश्मन समझ उससे किसी भी प्रकार बदला लेने की ठान लेता है। जिससे भैंरों सूरदास से ईर्ष्या करने लगता है।
- बदले की आग बुझाने के लिए एक रात भैरों सूरदास को झांपड़ी में आग लगाने घुसता है वहीं उसे सूरदास की जमा पूँजी एक पोटली में मिलती है। भैरों वह पोटली चुराकर झोंपड़ों में आग लगा देता है।
- आग बुझाने पूरा गांव इकट्ठा होता है। सभी आग बुझाने तथा अपराधी का नाम सौचने का कार्य करते हैं किंतु सूरदास की मनःस्थिति उस समय निराशापूर्ण होती है। वह आश्चर्यचकित, दुःखी तथा निराश था। उसके मन में कंवल एक ही बात थी कि वह किसी प्रकार झोंपड़ी में जाकर अपनी पोटली निकाल लाना चाहता था। उसे अपनी सभी मनोकामनाएँ पोटली के साथ जलती नज़र आ रही थीं।
- झोपड़ी के जल जाने पर सूरदास झोंपड़ी में अपनी पांटली तलाशने जाता है। वहाँ पर चारों ओर फूस की राख थी। उसे महसूस होता है कि आग में कंवल फूस ही नहीं उसकी तीनों अभिलाषाएँ भी जल गई। ढूंढने पर भी उसे पोटली नहीं मिलती।
- जगधर सूरदास की झोंपड़ी जलने के पीछे भैरों को जिम्मेदार समझ कर भैरों के पास जाता है। वहाँ उसे पता चलता है कि मैरों ने झोंपड़ी जलाने से पहले सूरदास की पोटली भी चुराई थी।
- जगधर के मन में पैसों को देखकर ईर्ष्या का भाव जगता है कि भैरों को रातो रात बिना मेहनत किए पैसे मिल गए तो उसे भी ये प्राप्त होने चाहिए। इसी बात की धमकी वह भैरों को देता है कि यदि उसने आधे पैसे न दिए तो वह सूरदास को इस राज़ के बारे में बता देगा। भैरों पैसे देने से इंकार कर देता है।
- इसी ईर्ष्या की भावना में आकर जगधर सूरदास को भैरों की चोरी के विषय में बताता है किंतु सूरदास अपनी इस आर्थिक हानि को जगधर से गुप्त रखता है क्योंकि एक गरीब के पास इतने पैसे होना उसके लिए लज्जा की बात है।
- सुभागी जो जगधर और सूरदास की बातें सुन रही है वह सूरदास से सहानुभूति रखती है तथा पोटली वापस लाने का संकल्प लेती है।
- सूरदास अपनी दशा पर दुखी था किंतु अपने पुत्र और उसके मित्रों की यह बात सुनकर कि 'खेल में कोई रोता है?' वह इस जीवन को एक खेल मानता है। उसकी मनोदशा बदल जाती है तथा वह एक खिलाड़ी की भांति उत्साह और आत्मविश्वास से भर जाता है जो अगला खेल खेलने को तैयार होता है। सूरदास की हार न मानने की प्रवृत्ति उसमें विजय गर्व की तरंग भर देती है।